चाहता है मेरा हृदय एक अभिनव परिवर्तन,
अंधकार को चीर कर हो सूर्य किरणों का आगमन,
पक्षियों के कलरव में नव अनुराग हो ,
झरनों की कल कल में सप्त सुरों का राग हो ,
वृक्ष अपनी हरीतिमा से भारत भूमि आच्छादित करें,
मंद सुगन्धित पवन हृदय आल्हादित करे,
अज्ञान के तिमिर में ज्ञान दीपक ज्योत जले,
भारतवासी भारत को स्वर्गतुल्य करें संकल्प ले ,
केवल हृदय के विचार नहीं , केवल भाषणों के अम्बार नहीं,
केवल संकल्पों पे संकल्प नहीं, केवल विकल्पों के विकल्प नहीं,
कुछ ऐसा की गंग-धार से मानवता पवन बने,
कुछ ऐसा की संपूर्ण विश्व देवभूमि की पद-धावन बने,
कुछ ऐसा की जय भारत घोष से, गूंजे धरती और आकाश,
कुछ ऐसा की भारतवासी न रहे, हीन क्षुधित और निराश,
मस्तक पर जिसके हिम किरीट, सागर पद प्रक्षालन करे,
गंगा सतलुज केश राशियाँ, अमरनाथ मुकुट मणि बने,
कला संस्कृति का अद्भुत संगम, भगवन जहाँ अवतरित हुए,
क्यूँ न फिर वह देव भूमि, पुनः जगत का गुरु बने?
हम वर्तमान सुद्रढ़ करें, उस स्वर्णिम भारत के लीये,
सर्वस्व अपना होम करें, उस नवोदित भारत के लीये,
यह देवभूमि फिर क्षितिज पटल पे , सूर्य सामान दमकेगी,
भारत के पुत्रों की प्रतिभा, द्विगुणित होके चमकेगी,
स्वप्न हमारे सत्य होंगे , वो समय अवश्य आएगा,
हम अभी ये प्रयत्न करे, अन्धकार दूर हो जायेगा!!
"भूमिपुत्र "
Sunday, September 11, 2011
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