Friday, October 09, 2009

मेरी कविताये : कसक

ऊपर से बस चमक रहा है , अन्दर सब कुछ बिखर रहा है
मेरे मन की इस हालत को , कोई क्यूँ नही समझ रहा है !

ख्वाब सुहाने दिखा के मुझको , छोड़ गया गहरी नींद में शायद
आँख खुली है फ़िर भी दिल क्यूँ , दीदार को उसके तरस रहा है !

छूकर तो देखता कभी वो , अहसास उसे फ़िर होता शायद ,
जमी हुयी इस बर्फ के नीचे, एक अंगारा दहक रहा है !

जाना ही था छोड़ के उसको , मैंने ग़लत समझा था शायद ,
उसकी यादों की प्यासी जमीं पे , आंखों का सावन बरस रहा है !!

"भूमिपुत्र "

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