हृदय को निराशा की घटाओं ने घेरा है ,
दीया हो गया जरुरी चारों और अँधेरा है !
इस अँधेरे को चीरकर आशा की किरण दिखती है
परन्तु अपना गंतव्य मिलने में बहुत देर लगती है !
कहीं मेरा अस्तित्व खो न जाए इन अंधेरों में
प्रेरणा मिलती है सागर की लहरों में !
जिस तरीके से ये लहरें बाधाये तोड़ जाती है
उसी तरह संघर्ष से सफलता मिल जाती है !
जो नहीं पकड़ पाता सही अवसर का हाथ
जो नहीं सुन पाता अपने हृदय की बात !
वो मनुष्य प्रगति के पथ से विचलित हो जाता है
उसका अस्तित्व उसे धिक्कारता है जो संघर्ष नहीं कर पाता है !!
"भूमिपुत्र "
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