Sunday, June 01, 2008

मेरी कवीताये - तेरी दौलत

तेरा हर ज़ख्म दर्द और आंसू , संभाल रखा है अब तक मैंने ,
मुझे यकीं है इस दौलत को, तुम कभी तो लेने आओगे !


तेरे सपनो के सब मोती , छुपा रखे है अब तक मैंने,
मुझे यकीं है इन्हे ढूंढने, तुम कभी न कभी तो आओगे !


तेरी यादों के लफ्जों से, कीतने गीत लीखे हैं मैंने ,
मुझे यकीं है बीखरे लफ्जों को , तुम कभी तो गाने आओगे!


ये ज़नाज़ा नीकल चुका है , फ़ीर भी तुमको खोज रहा हूँ ,
मुझे यकीं है मेरी कब्र पर , तुम कभी तो रोने आओगे !!

"भूमी-पुत्र "

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