अब भी उनकी गलियों से, जब गुजरना होता है ,
एक कसक सी उठती है , हर ज़ख्म फिर रोता है !
मेरे लहजे में तो खुदा भी , कुछ कमी नहीं देख पाया ,
फिर भी मेरे साथ ही क्यूँ , हादसा ये होता है !
अपनी हस्ती को मिटा के , जिसे ज़िन्दगी दी थी मैंने ,
वही शख्स मेरे घर की , क्यूँ बुनियाद तोड़ता है !
मौत है उसके दामन में , ये जानता है दिल भी ,
गुनाह ऐ इश्क करने का , अंजाम बस यही होता है !!
"भुमिपुत्र"
एक कसक सी उठती है , हर ज़ख्म फिर रोता है !
मेरे लहजे में तो खुदा भी , कुछ कमी नहीं देख पाया ,
फिर भी मेरे साथ ही क्यूँ , हादसा ये होता है !
अपनी हस्ती को मिटा के , जिसे ज़िन्दगी दी थी मैंने ,
वही शख्स मेरे घर की , क्यूँ बुनियाद तोड़ता है !
मौत है उसके दामन में , ये जानता है दिल भी ,
गुनाह ऐ इश्क करने का , अंजाम बस यही होता है !!
"भुमिपुत्र"
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