Thursday, July 28, 2011

मेरी कवितायेँ : सूर्य और ये जीवन

क्या तुमने कभी सूरज को ढलते हुए देखा है?
क्या तुमने कभी उसे पानी में पिघलते देखा है ?

क्या तुमने कभी उसे बादलों में छुपते देखा है ?
क्या तुमने कभी उसे पहाड़ों में गुमते देखा है ?

क्या तुमने किसी पंछिं को उसे पकड़ते देखा है ?
क्या तुमने उसकी पहली किरण को खुद से छूते देखा है ?

किसी पर्वत की चोटी पर एकाग्रचित्त जब ये अनुभव आता है ,
प्रकृति और मनुष्य जीवन का साथ समझ आता है !

सूरज का उदय और अस्त होना इस जीवन की परिभाषा है !
ये सृष्टि का आधार और मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा है !

इस जीवन का अंतिम सत्य तो उस परम से एकाकार है !
हर रोम जिसे चाहता है वो उस अद्भुत अद्वितीय से साक्षात्कार है !!

"भुमिपुत्र"

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