Monday, December 31, 2012

मेरी कवितायेँ - कोई ज्योति अब और नहीं



तुम  माँ  के  चेहरे  की  चमक  , पिता  के सीने  में  पलता  गुरुर  थी 
दादी  के  हाथ में  खेला  हुआ  बचपन , भाई  की  आँखों  का  नूर  थी ,

अपने  चाचा  की  दुलारी  गुडिया  और  मामा  की  प्यारी सी हूर थी, 
 एक प्रेमी की होने वाली दुल्हन और दोस्तों की टोली का कोहिनूर थी !

एक बस तुम्हारे होने से ही कितनी तमन्नाये और अरमान जुड़े थे ,
एक ख्वाब सा सज रहा था और दिलों के बाग़ महक रहे थे, 

पर उस कातिल रात को याद करके अब भी सिहरन उठती है ,
जिस रात को इस देश की बेटी की यूँ सरे आम आबरू लुटती है ,

दरिंदगी को पार कर गया ये वो घिनोना पल है, 
क्या कहूँ इन्सान होने पे मुझे आती बड़ी शर्म है ,

वो दामिनी , अमानत निर्भया नहीं , कोई माँ बेटी बहन ही थी,
हैवानियत का शिकार हुयी, एक मासूम परी ही थी , 

एक आस मन में जागी थी की फिर हंसती हुयी दिखेगी वो , 
इस लड़ाई को वो जीतेगी और फिर उठ के चल पड़ेगी वो , 

शरीर के घाव तो भर जाते पर शायद आत्मा भी कुचल गयी ,
हमें छोड़ दामिनी इश्वर की पवित्र संगत में चली गयी ,

है भारत के निर्लज्ज लोगों तुम इसी स्त्री को पूजते हो,  
उसी के गर्भ में जन्म पाके , उसी की गोद में पलते हो, 

लेकिन उसी की गर्भ में हत्या करके खुद को कलंकित करते हो ,
उसी को कहीं अकेली पाके , उसका स्त्रीत्व हरते हो , 

कलयुग है पर प्रलय नहीं है , अब भी जागो और समझो , 
जिसने मह्षासुर को मारा , उस दुर्गा को कम मत समझो , 

आओ प्रण लो इस देव भूमि पर , धर्म पताका फिर फहरेगी, 
माँ को उसका सम्मान मिलेगा , कोई ज्योति  फिर दुःख न सहेगी !!

"भूमिपुत्र " 

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