तुम माँ के चेहरे की चमक , पिता के सीने में पलता गुरुर थी
दादी के हाथ में खेला हुआ बचपन , भाई की आँखों का नूर थी ,
अपने चाचा की दुलारी गुडिया और मामा की प्यारी सी हूर थी,
एक प्रेमी की होने वाली दुल्हन और दोस्तों की टोली का कोहिनूर थी !
एक बस तुम्हारे होने से ही कितनी तमन्नाये और अरमान जुड़े थे ,
एक ख्वाब सा सज रहा था और दिलों के बाग़ महक रहे थे,
पर उस कातिल रात को याद करके अब भी सिहरन उठती है ,
जिस रात को इस देश की बेटी की यूँ सरे आम आबरू लुटती है ,
दरिंदगी को पार कर गया ये वो घिनोना पल है,
क्या कहूँ इन्सान होने पे मुझे आती बड़ी शर्म है ,
वो दामिनी , अमानत निर्भया नहीं , कोई माँ बेटी बहन ही थी,
हैवानियत का शिकार हुयी, एक मासूम परी ही थी ,
एक आस मन में जागी थी की फिर हंसती हुयी दिखेगी वो ,
इस लड़ाई को वो जीतेगी और फिर उठ के चल पड़ेगी वो ,
शरीर के घाव तो भर जाते पर शायद आत्मा भी कुचल गयी ,
हमें छोड़ दामिनी इश्वर की पवित्र संगत में चली गयी ,
है भारत के निर्लज्ज लोगों तुम इसी स्त्री को पूजते हो,
उसी के गर्भ में जन्म पाके , उसी की गोद में पलते हो,
लेकिन उसी की गर्भ में हत्या करके खुद को कलंकित करते हो ,
उसी को कहीं अकेली पाके , उसका स्त्रीत्व हरते हो ,
कलयुग है पर प्रलय नहीं है , अब भी जागो और समझो ,
जिसने मह्षासुर को मारा , उस दुर्गा को कम मत समझो ,
आओ प्रण लो इस देव भूमि पर , धर्म पताका फिर फहरेगी,
माँ को उसका सम्मान मिलेगा , कोई ज्योति फिर दुःख न सहेगी !!
"भूमिपुत्र "
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