तुलसी की रामायण,बाबा विश्वनाथ की काशी,
सदियों का उत्थान, ढूंढ रहे थे भारतवासी
अँधेरा था बहुत गहन,पर सूरज कहाँ रुका है
बड़े से बड़े तूफ़ान में, आशादीप कहाँ बुझा है!
आत्मसम्मान का भगवा, फिरसे लहराने को
माता के सिंहासन को, फिरसे चमकाने को!
उसे माँ गंगा ने खुद, मिलने बुलाया है
लगता है वही भीष्म, फिर से आया है !
"भूमिपुत्र "
"भूमिपुत्र "