निर्मल शीतल गंगा जल ,
लगे ना जिसको अमृतधारा !
पावन भारत की इस भूमि को ,
जिसने माता कह ना पुकारा !
तुंग हिमालय के लिए,
जिसके हृदय में प्यार नहीं !
ऐसे देशद्रोही को भारत में,
रहने का अधिकार नहीं !!
"भुमिपुत्र "
Saturday, July 30, 2011
Thursday, July 28, 2011
मेरी कवितायेँ : सूर्य और ये जीवन
क्या तुमने कभी सूरज को ढलते हुए देखा है?
क्या तुमने कभी उसे पानी में पिघलते देखा है ?
क्या तुमने कभी उसे बादलों में छुपते देखा है ?
क्या तुमने कभी उसे पहाड़ों में गुमते देखा है ?
क्या तुमने किसी पंछिं को उसे पकड़ते देखा है ?
क्या तुमने उसकी पहली किरण को खुद से छूते देखा है ?
किसी पर्वत की चोटी पर एकाग्रचित्त जब ये अनुभव आता है ,
प्रकृति और मनुष्य जीवन का साथ समझ आता है !
सूरज का उदय और अस्त होना इस जीवन की परिभाषा है !
ये सृष्टि का आधार और मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा है !
इस जीवन का अंतिम सत्य तो उस परम से एकाकार है !
हर रोम जिसे चाहता है वो उस अद्भुत अद्वितीय से साक्षात्कार है !!
"भुमिपुत्र"
क्या तुमने कभी उसे पानी में पिघलते देखा है ?
क्या तुमने कभी उसे बादलों में छुपते देखा है ?
क्या तुमने कभी उसे पहाड़ों में गुमते देखा है ?
क्या तुमने किसी पंछिं को उसे पकड़ते देखा है ?
क्या तुमने उसकी पहली किरण को खुद से छूते देखा है ?
किसी पर्वत की चोटी पर एकाग्रचित्त जब ये अनुभव आता है ,
प्रकृति और मनुष्य जीवन का साथ समझ आता है !
सूरज का उदय और अस्त होना इस जीवन की परिभाषा है !
ये सृष्टि का आधार और मोक्ष प्राप्ति की अभिलाषा है !
इस जीवन का अंतिम सत्य तो उस परम से एकाकार है !
हर रोम जिसे चाहता है वो उस अद्भुत अद्वितीय से साक्षात्कार है !!
"भुमिपुत्र"
Labels:
Hemant Dubey,
Hindi Poetry,
हिंदी कविताये
Monday, July 25, 2011
मेरी कवितायेँ : कुछ यादे
अब भी उनकी गलियों से, जब गुजरना होता है ,
एक कसक सी उठती है , हर ज़ख्म फिर रोता है !
मेरे लहजे में तो खुदा भी , कुछ कमी नहीं देख पाया ,
फिर भी मेरे साथ ही क्यूँ , हादसा ये होता है !
अपनी हस्ती को मिटा के , जिसे ज़िन्दगी दी थी मैंने ,
वही शख्स मेरे घर की , क्यूँ बुनियाद तोड़ता है !
मौत है उसके दामन में , ये जानता है दिल भी ,
गुनाह ऐ इश्क करने का , अंजाम बस यही होता है !!
"भुमिपुत्र"
एक कसक सी उठती है , हर ज़ख्म फिर रोता है !
मेरे लहजे में तो खुदा भी , कुछ कमी नहीं देख पाया ,
फिर भी मेरे साथ ही क्यूँ , हादसा ये होता है !
अपनी हस्ती को मिटा के , जिसे ज़िन्दगी दी थी मैंने ,
वही शख्स मेरे घर की , क्यूँ बुनियाद तोड़ता है !
मौत है उसके दामन में , ये जानता है दिल भी ,
गुनाह ऐ इश्क करने का , अंजाम बस यही होता है !!
"भुमिपुत्र"
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