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Wednesday, December 07, 2011

मेरी कविताये:- कल का सपना आज की हकीकत

चाहता हूँ कुछ गुजरे पल, बस मेरी ज़िन्दगी बन जाये,
कल रात का कोई ख्वाब, आज हकीकत में बदल जाये !

पानी पे चलने का हुनर , कल मुझको भी आ गया है ,
कोई जाये और ये बात , उन फरिश्तों को भी समझाए !


अपना ही पुराना चेहरा , अब याद भी नहीं आता ,
कोई नयी महक उठे , और मेरे बाग़ को फिर महकाए !



दरिया के बीच में खड़ा होकर , दिल सोचने लगा फिरसे ,
किश्ती को किनारे लगा दूँ , की यहीं डुबो दिया जाये !!



"भुमिपुत्र"

Monday, November 21, 2011

मेरी कवितायेँ : फिर से एक नयी कहानी

कोई फिरसे लिखे मुझपे अपनी कहानी ,
ऐ खुदा तू मुझे फिर से कोरा कागज़ कर दे ,

फिर रौशनी के लिए जलना है मुझे ,
उस गए धुंए को फिर से मोम कर दे ,

फिर एक नयी तक़दीर बनना है मुझे ,
मेरे हाथों की लकीरों को फ़ना करदे ,

फिर से उसी जड़ से उगना है मुझे ,
इस कटे मन के घावों को पूरा भर दे ,

" भुमिपुत्र "

Saturday, October 08, 2011

मेरी कवितायेँ ; कब तक

इतना दर्द सहा है अब तक ,
लेकिन मूक रहूँ में कबतक ?

मन में उठते झंझावातों से,
अकेला लड़ता रहूँ में कबतक ?

उसकी यादों की आगों में ,
यूँ ही जलता रहूँ में कबतक ?

हर कदम पे धोखा खाकर ,
सब कुछ सहता रहूँ में कबतक ?

खुद ही जल के , यूँ ही मिट के,
आंसूं पीता रहूँ में कबतक ?

उसने दिए हमेशा ज़ख्म है मुझको ,
ये ज़ख्म सीता रहूँ में कबतक ?

उसको चाहां बस यही खता थी मेरी ,
इस खता को रोता रहूँ में कबतक ?

लेकिन फिर भी इंतज़ार उसका है मुझको ,
ये इंतज़ार करता रहूँ में कबतक ??

"भूमिपुत्र"

Monday, July 25, 2011

मेरी कवितायेँ : कुछ यादे

अब भी उनकी गलियों से, जब गुजरना होता है ,
एक कसक सी उठती है , हर ज़ख्म फिर रोता है !

मेरे लहजे में तो खुदा भी , कुछ कमी नहीं देख पाया ,
फिर भी मेरे साथ ही क्यूँ , हादसा ये होता है !

अपनी हस्ती को मिटा के , जिसे ज़िन्दगी दी थी मैंने ,
वही शख्स मेरे घर की , क्यूँ बुनियाद तोड़ता है !

मौत है उसके दामन में , ये जानता है दिल भी ,
गुनाह ऐ इश्क करने का , अंजाम बस यही होता है !!

"भुमिपुत्र"

Saturday, July 23, 2011

मेरी कवितायेँ : अचानक

इस तरह कुछ लम्हे ज़िन्दगी का रुख बदल देंगे,
उसने सोचा भी नहीं मैंने बताया भी नहीं !

बातों ही बातों में कुछ ऐसे गलत फैसले होंगे ,
समझते तो सभी थे, उस वक़्त याद आया ही नहीं !

वो घर जिसे बनाने में सदियाँ सी गुज़र गयी ,
गिराते वक़्त कीसी को एक आंसूं आया ही नहीं !

ज़ख्म लगते ही कीसी के घाव भी भर गए हैं ,
ज़माना बदल गया है , मुझे समझ आया ही नहीं !!

"भुमिपुत्र "

Wednesday, December 15, 2010

मेरी कवितायेँ : तुम कभी तो आओगे

तेरा हर ज़ख्म, दर्द और आंसूं , संभाल रखा है अब तक मैंने ,
मुझे यकीं है इस दौलत को , तुम कभी तो लेने आओगे !

तेरे सपनो के सब मोती ,छुपा रखे हैं अब तक मैंने ,
मुझे यकीं है इन्हें ढूढने , तुम कभी न कभी तो आओगे !

तेरी यादों के लफ़्ज़ों से , कितने गीत लिखे हैं मैंने ,
मुझे यकीं है सब बिखरे लफ़्ज़ों को , तुम कभी तो गाने आओगे !

ये जनाज़ा निकल चूका है , फिर भी तुमको खोज रहा हूँ ,
मुझे यकीं है मेरी कब्र पर, तुम कभी तो रोने आओगे !!

"भूमिपुत्र "

Wednesday, June 04, 2008

मेरी कवीतायें - मेरा खुदा क्यों गलत हो गया ?

दील की ये जलन कीसी को दिखाई नहीं जाती ,
बात ही कुछ ऐसी है की बताई नहीं जाती,
ख़ुद ही पी रहा हूँ इस ज़हर को हँसते हँसते ,
पलक अगर भीगी हो तो उठाई नही जाती !


क्या ग़लत कर गया ये भी जान ना पाया ,
अचानक रूठ गया जो था मेरा साया ,
मरते हुए भी निकला तू जान है मेरी ,
मेरे हर पल की ये खुशी दिन रात है मेरी !!


रोका नही फ़िर भी उसने, ये खंजर चला दिया ,
मेरे अरमानों का प्यारा सा, मन्दिर गिरा दिया ,
क्या मिल गया उसे इससे, ये मैं समझ नही पाया ,
इन्सान हूँ खिलौना नहीं , क्यों ये वो समझ नही पाया !


दर्द भरी ये आवाज़ शायद खुदा सुन भी लेता ,
उस बेरहम को ये चीख सुनाई नहीं देती ,
जिसे मैंने खुदा माना वो ही धोखा दे गया ,
मुहब्बते कहीं ऐसे निभाई नहीं जाती !!

"भूमी-पुत्र "

Sunday, February 24, 2008

मेरी कविताये - असमंजस

असमंजस के भंवर जाल से,
पीड़ा हर पल उठती है।
विश्वासों के बांधों को,
तोड़ तोड़ कर बहती है।


उद्वेलित और व्याकुल मन बस,
व्यथा कथा ही कहता है,
प्यासे अन्तर को पुरा भर दे,
उस लहर को तरसता है।


कोई शब्द नहीं मिलते हैं,
इस पीडा को समझाने को।
कोई हल नहीं मिलते हैं,
इस गुत्थी को सुलझाने को।


जीवन ऐसा कैसा है जो,
तृप्त नहीं कर पाता है।
हर परत हटती रहती है ,
घाव गहराता जाता है ।


कोई, कहीं तो, कुछ तो होगा,
इसी आस पे जीवन चलता है।
हर प्रभात नई शुरुआत समझ के,
आगे बढ़ता रहता है।


कोई रहस्य नहीं जीवन मे,सब इश्वर की माया है।
जो यह गुत्थी समझ गया है,
मोक्ष वही ले पाया है।


होगा एक दिन ये भी होगा ,
मुझे मुक्ति का मार्ग मिलेगा ।
सुख दुःख का अन्तर नहीं होगा तब,
उस स्वर्ग का द्वार मिलेगा ।

तब तक जीता हूँ इस जीवन को,
जो होगा देखा जाएगा।
अंधकार इतना बड़ा नहीं है,
सूर्य फ़िर से आएगा ॥

भुमिपुत्र

Friday, October 26, 2007

मेरी कवितायेँ :- इंतज़ार


इंतज़ार तेरा रहेगा मुझको,
सूरज के जल जाने तक !

इंतज़ार तेरा रहेगा मुझको,
गंगा के बह जाने तक !

इंतज़ार तेरा रहेगा मुझको,
हिमालय के गिर जाने तक !

इंतज़ार तेरा रहेगा मुझको,
क़यामत के आ जाने तक !

इन सारी वफाओं के बदले,
दिल मेरा तो कुछ चाहेगा ही !

इंतज़ार तुम मेरा करना,
मेरे लौट के आने तक !!

"भुमिपुत्र "

मेरी कवितायेँ :- यादें

बीती यादों में खोकर के, तेरा प्यार समेटा मैंने !
वो कुछ ही तो मोती बचे हैं, बाकी सब कुछ खाक हुआ है !!

हर एक छोटी बात भी तेरी, एक अदा क़यामत की थी !
तेरी महक अब भी उठती है, बाकी सब कुछ हवा हुआ है !!

मेरे दिल कि हर धड़कन में, तेरी चाहत बसी हुयी थी !
तेरा नाम दिल में लिखा है अब तक, बाकी सब कुछ मिटा हुआ है !!

दिल मी उतरकर अब भी देखो, तुम्हारी यादें बसी है मुझमे!
तेरा चेहरा याद है अब तक, बाकी सब कुछ भुला हुआ है !!

तेरा मेरा ये रिश्ता शायद, तक़दीर को मंजूर नहीं था !
तेरे वादे अब तक जलते हैं, बाकी सब कुछ धुआं हुआ है !!

"भुमिपुत्र "

Saturday, October 20, 2007

मेरी कविताये :- गुनाह


अक्सर बस खामोश नज़र से ,
उसका चेहरा पढा था मैंने !

ख्वाबों को दिल में दफ़न किया था,
हकीकत को ही जीया था मैंने!

राज़ बनाकर तन्हाई में,
प्यार का गीत लिखा था मैंने!

उसकी बस एक नज़र के लिए,
अपना सब कुछ लुटा दिया था मैंने!

इश्क का जिक्र कहीं होता तो,
उसकी तस्वीर ख्यालों में थी,

माफ़ी के काबिल तो था,
बस यही गुनाह किया था मैंने!

" भुमिपुत्र "