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Sunday, June 17, 2012

कम उम्र में शहीद एक सैनिक का मरते वक़्त अपनी माँ को खत.

सीमा पे एक जवान जो शहीद होगया,
संवेदनाओं के कितने बीज बो गया,

तिरंगे में लिपटी लाश उसकी घर पे आ गयी,
सिहर उठी हवाएँ, उदासी छा गयी,


तिरंगे में रखा खत जो उसकी माँ को दिख गया,
मरता हुआ जवान उस खत में लिख गया,


बलिदान को अब आसुओं से धोना नहीं है,
तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है।


मुझको याद आ रहा है तेरा उंगली पकड़ना,
कंधे पे बिठाना मुझे बाहों में जकड़ना,


पगडंडियों की खेतों पे मैं तेज़ भागता,
सुनने को कहानी तेरी रातों को जागता,


पर बिन सुने कहानी तेरा लाल सो गया,
सोचा था तूने और कुछ और हो गया,


मुझसा न कोई घर में तेरे खिलौना नहीं है,
तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है।


सोचा था तूने अपने लिए बहू लाएगी,
पोते को अपने हाथ से झूला झुलाएगी,


तुतलाती बोली पोते की सुन न सकी माँ,
आँचल में अपने कलियाँ तू चुन न सकी माँ,


न रंगोली बनी घर में न घोड़े पे मैं चढ़ा,
पतंग पे सवर हो यमलोक मैं चल पड़ा,


वहाँ माँ तेरे आँचल का तो बिछौना नहीं है,
तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है।


बहना से कहना राखी पे याद नकरे,
किस्मत को न कोसे कोई फरियाद न करे,


अब कौन उसे चोटी पकड़ कर चिढ़ाएगा,
कौन भाई दूज का निवाला खाएगा,


कहना के भाई बन कर अबकी बारआऊँगा,
सुहाग वाली चुनरी अबकी बार लाऊँगा,


अब भाई और बहना में मेल होना नहीं है,
तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है।


सरकार मेरे नाम से कई फ़ंड लाएगी,
चौराहों पे तुझको तमाशा बनाएगी,


अस्पताल स्कूलों के नाम रखेगी,
अनमोल शहादत का कुछ दाम रखेगी,


पर दलाओं की इस दलाली पर तूथूक देना माँ,
बेटे की मौत की कोई कीमत न लेना माँ,
भूखे भले मखमल पे हमको सोना नहीं है,
तुझको कसम है माँ मेरी की रोना नहीं है। 


(not written by me- Copied from Facebook Page)

Sunday, October 02, 2011

मेरी कवितायेँ - जीवन

मनुष्य जीवन का एक ही पक्ष क्यूँ पहचानता है ?
शायद जानता है परन्तु अनजान बना रहना चाहता है !

सागर में यदि मोती है तो तूफ़ान भी तो है ,
मंथन में यदि अमृत है तो विष भी तो है ,

सूर्य में अगर जीवन है तो ताप भी तो है ,
बादलों में बरसात ही नहीं बिजली भी तो है ,

वृक्षों में अगर छाया है तो पतझड़ भी तो है ,
पर्वतों में यदि ऊंचाई है तो दुर्गमता भी तो है ,

पौधा यदि फुल खिलाता है तो वह कांटे भी देता है ,
चेहरा अगर ख़ुशी दिखाताहै तो आंसूं भी देता है ,

सूर्य केवल उदय नहीं अस्त भी होता है ,
फुल केवल खिलता नहीं मुरझाता भी तो है ,

मिलन यदि है कहीं तो वहीँ विरह भी तो है ,
जन्म यदि है कहीं तो वहीँ मृत्यु भी तो है ,

और गीता ने कहा है मृत्युं ही एकमात्र सम्भावना है ,
अतः हमें जीवन को समय के अनुसार ढालना है ,

जीवन तो हमेशा से ही विपरीतताओं का संगम है ,
यही बात समझ नहीं पाटा ये हमारा मन है ,

जीवन में दोनों पक्षों का सामंजस्य जरुरी है ,
सुख दुःख ऐसी रेखाएं है जो एक दुसरे के बिना अधूरी है ,

जीवन के झरने से सुख का संगीत तब तक नहीं निकलता,
जब तक वो संघर्ष की चट्टानों से निकलकर आगे नहीं बढ़ता !!

"भूमिपुत्र "

Saturday, July 23, 2011

मेरी कवितायेँ : अचानक

इस तरह कुछ लम्हे ज़िन्दगी का रुख बदल देंगे,
उसने सोचा भी नहीं मैंने बताया भी नहीं !

बातों ही बातों में कुछ ऐसे गलत फैसले होंगे ,
समझते तो सभी थे, उस वक़्त याद आया ही नहीं !

वो घर जिसे बनाने में सदियाँ सी गुज़र गयी ,
गिराते वक़्त कीसी को एक आंसूं आया ही नहीं !

ज़ख्म लगते ही कीसी के घाव भी भर गए हैं ,
ज़माना बदल गया है , मुझे समझ आया ही नहीं !!

"भुमिपुत्र "

Wednesday, December 15, 2010

मेरी कवितायेँ : तुम कभी तो आओगे

तेरा हर ज़ख्म, दर्द और आंसूं , संभाल रखा है अब तक मैंने ,
मुझे यकीं है इस दौलत को , तुम कभी तो लेने आओगे !

तेरे सपनो के सब मोती ,छुपा रखे हैं अब तक मैंने ,
मुझे यकीं है इन्हें ढूढने , तुम कभी न कभी तो आओगे !

तेरी यादों के लफ़्ज़ों से , कितने गीत लिखे हैं मैंने ,
मुझे यकीं है सब बिखरे लफ़्ज़ों को , तुम कभी तो गाने आओगे !

ये जनाज़ा निकल चूका है , फिर भी तुमको खोज रहा हूँ ,
मुझे यकीं है मेरी कब्र पर, तुम कभी तो रोने आओगे !!

"भूमिपुत्र "

Sunday, October 10, 2010

मेरी कवितायेँ : फिर वही सब कुछ

लगता था की सैलाबों को काबू करना आ गया है मुझे ,
आज फिर यादों की बारिशों में सारेबाँध बह गए हैं !

लगता था की खुद को भुलाना आ गया है मुझे ,
आज फिर सब पुराने पल आँखों में घूम गए हैं !

लगता था की पत्थर बनके रहना आ गया है मुझे ,
आज फिर सारे इरादे मोम बन के पिधल गए हैं !

जानता था की तुझे भूलना आसान नहीं होगा ,
आज फिर मेरी कोशिशों में बल पड़ गए हैं !!

"भूमिपुत्र "

Sunday, July 11, 2010

मेरी कवितायेँ : ये बारिशें

आंसू मेरी आखों से तेरी याद में बस बहे हैं ,
ये बादल मगर न जाने किसलिए तड़प रहा है !

उस खुदा को भी शायद मेरे दर्द का पता है ,
अपनी नियामतों से वो मुझको भीगो रहा है !

भीगते हुए ये ज़ख्म ज़माने से छुप ही जाते है,
मेरे अश्क और ये पानी मिलके बह रहा है !

ये बारिशें कुछ वक़्त में शायद बंद भी हो जाए,
मेरे दिल का ये बादल बहुत दिनों से रो रहा है !

"भूमिपुत्र "

Friday, October 02, 2009

मेरी कवितायें : काश

मेरा कहा अगर जो मान वो लेता ,

रुख हमारी जिंदगी का और ही होता !


मेरा हाथ अगर जो थाम वो लेता

इस तूफान को हमने सहन कर लिया होता !


दिए दर्द का अगर जो दाम वो लेता

दौलत का उसकी शायद हिसाब नही होता !


शिद्दत से अगर जो नाम वो लेता

कब्र में भी दिल शायद धड़क गया होता !!


"भूमिपुत्र"

Tuesday, September 29, 2009

मेरी कवितायें : बड़ी मुश्किल में हूँ

साँस अगर लेता हूँ तो महक उसकी ही आती है
साँस अगर न लूँ तो बस जान निकल जाती है !
बड़ी मुश्किल में हूँ क्या करूँ समझ नही आता
वो बहुत दूर है मुझसे मगर याद बहुत आती है !!

आँखें अगर खोलूं तो नज़र बस वही आती है
आँखें जो बंद रखूं तो कसक और बढ़ जाती है !
बड़ी मुश्किल में हूँ क्या करूँ समझ नही आता
वो सामने नही है मगर हर जगह दिख जाती है !!

बात अगर करता हूँ तो आवाज़ उसकी ही आती है
में सुनु या ना सुनु बहुत उलझन सी हो जाती है !
बड़ी मुश्किल में हूँ क्या करूँ समझ नही आता
वो तनहाइयों में मुझको हर लम्हा सताती है !!

अशक़ अगर गिरते हैं तो बस बाढ़ सी आती है
अशक़ अगर ना गिरें तो पलकें ही फट जाती है !
बड़ी मुश्किल में हूँ क्या करूँ समझ नही आता
वो दील तो कबका ले चुकी अब बस रूह ही बाकी है !!

"भूमिपुत्र "

Friday, September 25, 2009

मेरी कवितायें : बहुत अकेला हो गया हूँ

ख्वाबों के महल गिरकर टूटे , तिनके तक उडा ले गई हवा !
साया भी नही है साथ मेरे , बहुत अकेला में हो गया हूँ !!

आंसू मेरे दिख न जाए , बारिशों में ही निकलता हूँ
साँसे भी साथ छोड़ रही है , बहुत अकेला में हो गया हूँ !!

वो ही एक ठहराव था , जो मेरी रूह को सुकून दे गया
ख़ुद से बातें करता हूँ , बहुत अकेला में हो गया हूँ !!

किसी और से मिले लगता है , बहुत वक्त निकल गया
आइना नही पहचानता मुझे , बहुत अकेला में हो गया हूँ !!

"भूमिपुत्र"

Tuesday, September 22, 2009

मेरी कवितायें: वो बदल गया

बदला वो इस तरह के , मेरी ज़िन्दगी बदल गया
मुझे ऐसे मरता देखकर , दील उसका शायद बहल गया !!

दुश्मन होता अगर कहीं वो , तो शायद समझ भी जाता ,
हमसफ़र जिसे माना मैंने , कत्ल करके निकल गया !!

इंतज़ार किसिका करने की, हद भी कोई होती है ,
वो तो आया नही और, में बुत बनकर रह गया !!

मुट्ठी में भरी रेत जैसे ,उसे अपना मान लिया था मैंने ,
ख्वाब सारे टूट गए हैं, वो हाथ झटककर चल गया !!

"भूमिपुत्र "

Wednesday, January 28, 2009

मेरी कवितायें :- एक अधुरा ख्वाब

ना जाने कितने लोग मेरे साथ हैं ,
फ़िर भी तड़पाता ये अकेलेपन का अहसास है !

होठों की हँसी पे जाती हैं सबकी नज़र ,
आंखों को जरा देख एक धंसा हुआ फांस है !

एक अधूरे ख्वाब जैसी लगने लगी है ज़िन्दगी ,
दिल धड़क तो रहा है पर साँसे उसके पास है !

उसका ख्याल आते ही चहरे पे चमक आती है ,
में जानता हूँ इस दिल में उसकी जगह कुछ खास है !!

"भुमिपुत्र "

Friday, June 06, 2008

मेरी कवितायें - ये बन्धन

जैसे पंछी भोर मे गाए , जैसे पंख खोल उड़ जाए ,
ये अनुभव ऐसा है जैसे , कोई गंगा नहा के आए !


जैसे भंवरा ख़ुद ही आए , एक फूल मे गुम हो जाए ,
ये बन्धन तो ऐसा है जैसे , हृदय रुके और साँसे थम जाए !


वो आवाज़ सुनाई दे और हृदय के तार बज जाए,
ये संगीत ऐसा है जैसे , कान्हा अधरों पे मुरली सजाये !


सूखी धरती सावन को पाये , जैसे चकोर चाँद को चाहे ,
ये प्रेम ऐसा है जैसे , भक्त और इश्वर एक हो जाए !!

"भूमी-पुत्र "

Wednesday, June 04, 2008

मेरी कवीतायें - मेरा खुदा क्यों गलत हो गया ?

दील की ये जलन कीसी को दिखाई नहीं जाती ,
बात ही कुछ ऐसी है की बताई नहीं जाती,
ख़ुद ही पी रहा हूँ इस ज़हर को हँसते हँसते ,
पलक अगर भीगी हो तो उठाई नही जाती !


क्या ग़लत कर गया ये भी जान ना पाया ,
अचानक रूठ गया जो था मेरा साया ,
मरते हुए भी निकला तू जान है मेरी ,
मेरे हर पल की ये खुशी दिन रात है मेरी !!


रोका नही फ़िर भी उसने, ये खंजर चला दिया ,
मेरे अरमानों का प्यारा सा, मन्दिर गिरा दिया ,
क्या मिल गया उसे इससे, ये मैं समझ नही पाया ,
इन्सान हूँ खिलौना नहीं , क्यों ये वो समझ नही पाया !


दर्द भरी ये आवाज़ शायद खुदा सुन भी लेता ,
उस बेरहम को ये चीख सुनाई नहीं देती ,
जिसे मैंने खुदा माना वो ही धोखा दे गया ,
मुहब्बते कहीं ऐसे निभाई नहीं जाती !!

"भूमी-पुत्र "

Sunday, February 24, 2008

मेरी कविताये - असमंजस

असमंजस के भंवर जाल से,
पीड़ा हर पल उठती है।
विश्वासों के बांधों को,
तोड़ तोड़ कर बहती है।


उद्वेलित और व्याकुल मन बस,
व्यथा कथा ही कहता है,
प्यासे अन्तर को पुरा भर दे,
उस लहर को तरसता है।


कोई शब्द नहीं मिलते हैं,
इस पीडा को समझाने को।
कोई हल नहीं मिलते हैं,
इस गुत्थी को सुलझाने को।


जीवन ऐसा कैसा है जो,
तृप्त नहीं कर पाता है।
हर परत हटती रहती है ,
घाव गहराता जाता है ।


कोई, कहीं तो, कुछ तो होगा,
इसी आस पे जीवन चलता है।
हर प्रभात नई शुरुआत समझ के,
आगे बढ़ता रहता है।


कोई रहस्य नहीं जीवन मे,सब इश्वर की माया है।
जो यह गुत्थी समझ गया है,
मोक्ष वही ले पाया है।


होगा एक दिन ये भी होगा ,
मुझे मुक्ति का मार्ग मिलेगा ।
सुख दुःख का अन्तर नहीं होगा तब,
उस स्वर्ग का द्वार मिलेगा ।

तब तक जीता हूँ इस जीवन को,
जो होगा देखा जाएगा।
अंधकार इतना बड़ा नहीं है,
सूर्य फ़िर से आएगा ॥

भुमिपुत्र

Friday, October 26, 2007

मेरी कवितायेँ :- यादें

बीती यादों में खोकर के, तेरा प्यार समेटा मैंने !
वो कुछ ही तो मोती बचे हैं, बाकी सब कुछ खाक हुआ है !!

हर एक छोटी बात भी तेरी, एक अदा क़यामत की थी !
तेरी महक अब भी उठती है, बाकी सब कुछ हवा हुआ है !!

मेरे दिल कि हर धड़कन में, तेरी चाहत बसी हुयी थी !
तेरा नाम दिल में लिखा है अब तक, बाकी सब कुछ मिटा हुआ है !!

दिल मी उतरकर अब भी देखो, तुम्हारी यादें बसी है मुझमे!
तेरा चेहरा याद है अब तक, बाकी सब कुछ भुला हुआ है !!

तेरा मेरा ये रिश्ता शायद, तक़दीर को मंजूर नहीं था !
तेरे वादे अब तक जलते हैं, बाकी सब कुछ धुआं हुआ है !!

"भुमिपुत्र "

Saturday, October 20, 2007

मेरी कविताये :- गुनाह


अक्सर बस खामोश नज़र से ,
उसका चेहरा पढा था मैंने !

ख्वाबों को दिल में दफ़न किया था,
हकीकत को ही जीया था मैंने!

राज़ बनाकर तन्हाई में,
प्यार का गीत लिखा था मैंने!

उसकी बस एक नज़र के लिए,
अपना सब कुछ लुटा दिया था मैंने!

इश्क का जिक्र कहीं होता तो,
उसकी तस्वीर ख्यालों में थी,

माफ़ी के काबिल तो था,
बस यही गुनाह किया था मैंने!

" भुमिपुत्र "