Sunday, October 02, 2011

मेरी कवितायेँ - जीवन

मनुष्य जीवन का एक ही पक्ष क्यूँ पहचानता है ?
शायद जानता है परन्तु अनजान बना रहना चाहता है !

सागर में यदि मोती है तो तूफ़ान भी तो है ,
मंथन में यदि अमृत है तो विष भी तो है ,

सूर्य में अगर जीवन है तो ताप भी तो है ,
बादलों में बरसात ही नहीं बिजली भी तो है ,

वृक्षों में अगर छाया है तो पतझड़ भी तो है ,
पर्वतों में यदि ऊंचाई है तो दुर्गमता भी तो है ,

पौधा यदि फुल खिलाता है तो वह कांटे भी देता है ,
चेहरा अगर ख़ुशी दिखाताहै तो आंसूं भी देता है ,

सूर्य केवल उदय नहीं अस्त भी होता है ,
फुल केवल खिलता नहीं मुरझाता भी तो है ,

मिलन यदि है कहीं तो वहीँ विरह भी तो है ,
जन्म यदि है कहीं तो वहीँ मृत्यु भी तो है ,

और गीता ने कहा है मृत्युं ही एकमात्र सम्भावना है ,
अतः हमें जीवन को समय के अनुसार ढालना है ,

जीवन तो हमेशा से ही विपरीतताओं का संगम है ,
यही बात समझ नहीं पाटा ये हमारा मन है ,

जीवन में दोनों पक्षों का सामंजस्य जरुरी है ,
सुख दुःख ऐसी रेखाएं है जो एक दुसरे के बिना अधूरी है ,

जीवन के झरने से सुख का संगीत तब तक नहीं निकलता,
जब तक वो संघर्ष की चट्टानों से निकलकर आगे नहीं बढ़ता !!

"भूमिपुत्र "

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