Tuesday, September 22, 2009

मेरी कवितायें: वो बदल गया

बदला वो इस तरह के , मेरी ज़िन्दगी बदल गया
मुझे ऐसे मरता देखकर , दील उसका शायद बहल गया !!

दुश्मन होता अगर कहीं वो , तो शायद समझ भी जाता ,
हमसफ़र जिसे माना मैंने , कत्ल करके निकल गया !!

इंतज़ार किसिका करने की, हद भी कोई होती है ,
वो तो आया नही और, में बुत बनकर रह गया !!

मुट्ठी में भरी रेत जैसे ,उसे अपना मान लिया था मैंने ,
ख्वाब सारे टूट गए हैं, वो हाथ झटककर चल गया !!

"भूमिपुत्र "

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