Sunday, October 10, 2010

मेरी कवितायेँ : फिर वही सब कुछ

लगता था की सैलाबों को काबू करना आ गया है मुझे ,
आज फिर यादों की बारिशों में सारेबाँध बह गए हैं !

लगता था की खुद को भुलाना आ गया है मुझे ,
आज फिर सब पुराने पल आँखों में घूम गए हैं !

लगता था की पत्थर बनके रहना आ गया है मुझे ,
आज फिर सारे इरादे मोम बन के पिधल गए हैं !

जानता था की तुझे भूलना आसान नहीं होगा ,
आज फिर मेरी कोशिशों में बल पड़ गए हैं !!

"भूमिपुत्र "

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