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Saturday, October 20, 2007

मेरी कविताये :- गुनाह


अक्सर बस खामोश नज़र से ,
उसका चेहरा पढा था मैंने !

ख्वाबों को दिल में दफ़न किया था,
हकीकत को ही जीया था मैंने!

राज़ बनाकर तन्हाई में,
प्यार का गीत लिखा था मैंने!

उसकी बस एक नज़र के लिए,
अपना सब कुछ लुटा दिया था मैंने!

इश्क का जिक्र कहीं होता तो,
उसकी तस्वीर ख्यालों में थी,

माफ़ी के काबिल तो था,
बस यही गुनाह किया था मैंने!

" भुमिपुत्र "