Wednesday, June 04, 2008

मेरी कवीतायें - मेरा खुदा क्यों गलत हो गया ?

दील की ये जलन कीसी को दिखाई नहीं जाती ,
बात ही कुछ ऐसी है की बताई नहीं जाती,
ख़ुद ही पी रहा हूँ इस ज़हर को हँसते हँसते ,
पलक अगर भीगी हो तो उठाई नही जाती !


क्या ग़लत कर गया ये भी जान ना पाया ,
अचानक रूठ गया जो था मेरा साया ,
मरते हुए भी निकला तू जान है मेरी ,
मेरे हर पल की ये खुशी दिन रात है मेरी !!


रोका नही फ़िर भी उसने, ये खंजर चला दिया ,
मेरे अरमानों का प्यारा सा, मन्दिर गिरा दिया ,
क्या मिल गया उसे इससे, ये मैं समझ नही पाया ,
इन्सान हूँ खिलौना नहीं , क्यों ये वो समझ नही पाया !


दर्द भरी ये आवाज़ शायद खुदा सुन भी लेता ,
उस बेरहम को ये चीख सुनाई नहीं देती ,
जिसे मैंने खुदा माना वो ही धोखा दे गया ,
मुहब्बते कहीं ऐसे निभाई नहीं जाती !!

"भूमी-पुत्र "

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