Thursday, October 15, 2009

मेरी कवितायेँ : अस्तित्व का संघर्ष

हृदय को निराशा की घटाओं ने घेरा है ,

दीया हो गया जरुरी चारों और अँधेरा है !


इस अँधेरे को चीरकर आशा की किरण दिखती है
परन्तु अपना गंतव्य मिलने में बहुत देर लगती है !


कहीं मेरा अस्तित्व खो न जाए इन अंधेरों में

प्रेरणा मिलती है सागर की लहरों में !


जिस तरीके से ये लहरें बाधाये तोड़ जाती है

उसी तरह संघर्ष से सफलता मिल जाती है !


जो नहीं पकड़ पाता सही अवसर का हाथ

जो नहीं सुन पाता अपने हृदय की बात !


वो मनुष्य प्रगति के पथ से विचलित हो जाता है

उसका अस्तित्व उसे धिक्कारता है जो संघर्ष नहीं कर पाता है !!

"भूमिपुत्र "

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