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Sunday, January 08, 2012

मेरी कविताये : वो रात जिसकी सुबह नहीं

रात की ठिठुरन तेरे होठों की गर्मी में कहीं खो गयी ,
तेरे ऐसे ही चले आने से मेरी दुनिया रोशन हो गयी ,
मेरे हमसफ़र निकल पड़े हैं अब हम मंजिल की तलाश में,
हर पल ये अहसास होने लगा है मुझे कि तुम मेरी हो गयी!!



एक खूबसूरत का अरमान दिल में करवटे बदल रहा है,
मुड़ी चादरों कि सिलवटों में कोई ख्वाब उलझ रहा है ,
मेरे वजूद में बस ख़ुशी है शायद मौसम सँवर रहा है ,
ज़िन्दगी की तलाश में था, तू मिली और वो तेरी हो गयी !
हर पल ये अहसास होने लगा है मुझे कि तुम मेरी हो गयी !!



जाते वक़्त को मुट्ठी में पकड़ इस लम्हे को वहीँ रोक दूँ ,
तुम जाने के लिये उठो और में हाथ थाम तुम्हे टोक दूँ ,
इन आँखों कि शरारत में खोऊ और खुद को तुम्हे सौंप दूँ ,
मेरे प्यार कि मीठास चख , मीठी नींदों में तुम सो गयी !
हर पल ये अहसास होने लगा है मुझे कि तुम मेरी हो गयी !!



आँख खोलके जब देखा तो तेरे होठों पे बिखरे मोती थे सजे,
तेरे गालों पे थी हया कि लाली और गेसू मेरे चेहरे पे थे पड़े,
ये शायद वो रात होने वाली है जिसकी हमें सुबह न मिले,
तेरे हाथों कि नर्म छुंअन हमें फिर अनजानी राहों पे ले गयी !
हर पल ये अहसास होने लगा है मुझे कि तुम मेरी हो गयी !!



"भुमिपुत्र"